( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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नामवर सिंह के आलोचना-कर्म में कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ का स्थान

    1 Author(s):  JERARAM MALI

Vol -  9, Issue- 2 ,         Page(s) : 173 - 177  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

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Abstract

हिन्दी आलोचना के शिखर-पुरुष प्रो. नामवरसिंह मूलतः एक कवि ही थे। विद्यार्थी जीवन में उन्होनें ‘पुनीत’ कविनाम से कविताएँ रचीं। पाँचवें दशक में जब वें काॅलेज छात्र थे; तब उन दिनों ‘छायावाद’ समर्थन और विरोध के ज्वारभाटे में डांवाडोल हो रहा था। छायावाद युग के शीर्ष आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी अपने समय की इस काव्य धारा की कमियों को रेखांकित करते हुए लिखा था कि ’स्वच्छंद काव्य-धारा प्रवाह ही रवीन्द्रनाथ की कविताओं तथा कुछ अन्य विदेशी वादों के प्रभाव से विपथगामी होकर छायावाद बन गया’।(1) शुक्ल जी के इसी विचार से नामवर जी आकर्षित हुए और उनमे रविन्द्रनाथ टेगौर के प्रति जिज्ञासा जगी। इसी परिपेक्ष्य को समझते हुए नामवर जी में बंगला भाषा और साहित्य के प्रति आकर्षण जगा।


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