( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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भोजपुरी साहित्य दृष्ट्या वाग्विश्रलेेषणे पाणिनेः योगदानम सारः

    1 Author(s):  DR SHYAMLAL

Vol -  5, Issue- 1 ,         Page(s) : 500 - 509  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भाषा मात्र विश्लेषणे पाणिनेः योगदानम् प्राचीन कालेन अदृष्यते। साहित्ये भोजपुरी साहित्यदृष्ट्या वाग्विश्रलेषणे पाणिनी व्याकरणस्य महत्वं प्राय सर्वे विद्वास समान रूपेण स्वीकुर्वन्ति। समस्त शोधनिबन्धे भोजपुरी वाचि विख्यातानां शब्दानां पाणिनीरीत्या प्रकृति प्रत्यानां निर्देशनेन एक तथ्यान्वेषणं कृत वर्तते। भोजपुरी साहित्य न केवलम विख्यात अपितु विशालम् वर्तते। यद् भोजपुरी साहित्यदृष्ट्या वाग्विश्रलेषणे पाणिनी व्याकरणस्य का भूमिका भवितुं शक्रुोति? भोजपुरी साहित्ये पाणिनी व्याकरण वाग्विश्रलेषण एका पद्वति सड्केतिता वर्तते।

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1. महंतो दामोदर (पुनमुद्रण) 2002 पाणिनीय शिक्षा, मोतीलाल बनारसीदास। 
2. द्विवेदी कपिलदेव, 2003 भाषाविज्ञान भाषा शास्त्र विश्वविद्यालय प्रकाशन वाराणसी 
3. शास्त्री गोपाल पाणिनीयाष्टाध्यायी चैखम्बासंस्कृत प्रतिष्ठान् , वाराणसी। 
4. पाण्डेय गोपालदत 1997 सिदातकौमुदी , श्री चैखम्बाविद्याभवन, वाराणसी 
5. त्रिपाठी नारायणदत व पाण्डेय रामनारायण 2008 लघुसिद्वान्त कौमुदी गीता प्रेस गौरखपुर। 
6. बीम्स जान 1868 आफ रायल एशियाटिक सोसायटी भाग-3 
 

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