( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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धार्मिकता,संस्कृतीकरण एवम् भारतीय नवधार्मिक संगठन

    1 Author(s):  BHALCHANDRA D. PATIL

Vol -  2, Issue- 2 ,         Page(s) : 104 - 107  (2011 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्राचीन काल में विशिष्ट या श्रेष्ठ जनों तक सीमित धार्मिक अधिकार तथा धर्म परंपराओं के पालन की उत्कटता नव धार्मिक संगठनोंव्दारा जनसामान्य तक बडे ही प्रभावषाली ढंग से प्रसारित की जा रही है। ये नवधामिÕक संगठन संस्कृतिकरण के प्रसारस्त्रोत के रुपमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। वर्तमान में इन संगठनों के कारण हिंदू समाज के विभिन्न जाति-श्रेणियों में संस्कृतीकरण की मात्रा में वृद्धि हुई है। प्रस्तुत शोधनिबंध में ऐतिहासिक कालसे धार्मिकता का प्रसारण किस तरह हुआ है तथा सांप्रत काल में नवधार्मिक संगठनों की भूमिका किस तरह इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है इसकी चर्चा की गई है। तथ्थ्य संकलन हेतु महाराष्टभ के जामनेर तहसिल क्षेत्र के नवधार्मिक संगठनों के अनुयायियों का समूह चयन किया गया था तथा सर्वेक्षण, निरिक्षण एवं साक्षात्कार के माध्यम से तथ्थ्यों का संकलन किया गया है।

1 बिवलकर र.वा.य महाराष्टभ के प्रमुख साधना संप्रदायय नाशिकः कौस्तुभ प्रकाशन
2 लवानिया एम्.एम्.,2001, भारत का समाजशास्त्र, जयपुर: रिसर्च पब्लिकेशन्स
3 सरदार गं. बा., 1976, संत वाड्ःमयाची सामाजिक फलश्रुती, पुणे: काॅन्टिनेंटल प्रकाशन
4 कुलकर्णी पी.के.,1997, संस्थांचे समाजशास्त्र, नागपुरः विद्या प्रकाशन 
5 Ketkar S.V.      , History of Caste in Indial
6 Sriniwas M.N., 1952, Religion & Society among the Coorges of South India, Oxford
7 Desai A.R., 1993, Modern Godmen in India, Bombay: Popular.

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