International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
औपनिवेशिक ज्ञानकांड और हिन्दी भक्ति साहित्य की अकादमिक समझ (1820-1920)
1 Author(s): DR. TRIPTI SRIVASTAVA
Vol - 6, Issue- 9 , Page(s) : 37 - 50 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य की जो समझ एक लम्बे समय तक हिन्दी अकादमिक जगत में विद्वानों के मध्य विद्यमान रही है, उस समझ के निर्माण में औपनिवेशिक ज्ञानकांड की भूमिका निर्णायक रही है. समस्त साम्राज्यवादी प्रक्रम के पूर्व के भारतीय समाज और उत्तर औपनिवेशिक भारतीय समाज की चेतना में सातत्य की बजाय एक विक्षोभ और विचलन दिखता है, जिसे औपनिवेशिक ज्ञानकांड के रूप में रेखांकित किया जा सकता है. हिन्दी भक्ति साहित्य के अकादमिक अध्ययन की शुरुआत और उसकी समझ बनने और विकसित होने में इस विक्षोभ और विचलन का गहरा प्रभाव रहा है.