( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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प्रगतिशील साहित्य का यथार्थवादी आग्रह

    1 Author(s):  DR. AMIT KUMAR AWASTHI

Vol -  6, Issue- 11 ,         Page(s) : 210 - 214  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्रगतिशील साहित्य का आंदोलन आज विश्व-साहित्य में सबसे अधिक सशक्त और स्वस्थ आंदोलन है। वैसे तो अप्रत्यक्ष रूप से, प्रत्येक काल में प्रगतिशीलता को साहित्यिक श्रेष्ठता का तत्त्व माना गया है; किन्तु आधुनिक युग में अपने एक संगठित और सुलक्षित आंदोलन के रूप में वह पहली बार सामने आया है। अतः साहित्य-विकास का आधुनिक चरण यदि ‘प्रगतिशील साहित्य’ के नाम से अभिहित किया गया, तो उसमें ‘न्यून- पदत्व’ दोष होते हुए भी; उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। ‘प्रगतिशील-लेखक-संघ’ के लखनऊ अधिवेशन में, सभापति के आसन से दिए गये अपने भाषण में प्रेमचन्द जी ने कहा था — ‘प्रगतिशील-लेखक-संघ’ यह नाम मेरे विचार से ग़लत है। साहित्यकार या कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है; अगर यह उसका स्वभाव न होता तो शायद वह साहित्यकार ही न होता।’

  1. डॉ. महेंद्र भटनागर
  2. कुछ विचार' , भाग 1,  पृष्ठ 12

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