( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक दार्शनिक विचारों की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगगिकता

    1 Author(s):  MADAN MOHAN UNIYAL

Vol -  7, Issue- 1 ,         Page(s) : 174 - 179  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

हम 21 वीं सदी में पहुँच चुके हैं जिसमें बदलाव की हवा इतनी तीव्र है कि सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि मूल्य उड़कट गायब होते नजर आ रहे हैं। तकनीकि प्रगति ने हमें इतना आधुनिक बना दिया है कि हम सिर्फ मशीन बनकर रह गये हैं। शिक्षा जो हमें मुल्य सिखाती है उसका भी बाजारीकरण हो गया है। बाजारीकरण का मुख्यतः कारण है कम्पनीकरण इससे शिक्षाकी बुनियाद व्यवारिक जगत के निर्धारित उद्देश्यों जरुरतों मानवीय संसाधनों आदि के अनुरुप सफलता हासिल करने वाली बनते जा रही है। कहने का आश्य यह है कि शिक्षा पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गई है। आज जब विश्व भूमण्डलीकरण निजीकरण उदासीकरण और हिंसा एंव अशान्ती से जूझ रहा है जिससे समाज में असिष्णुता, कट्टटरवाद और विवाद का बोलबाला हो गया है ऐसे में हमें भारतीय संस्कृति में किसी भी धार्मिक, अध्यात्मिक विचारों के पोषक मनीषियों का चिंतन, मनन करना होगा। जो शांति ही आनंद को बुलाने का रास्ता अग्रसर करेंगे।

  1. तिवारी, भरत कुमार, विवेकानन्द का दार्शनिक चिन्तन, भारतीय भाषा पीठ, नई दिल्ली, 1988, पृष्ठ-12
  2. Radhakrishnan S., The Principal Upanishads, Muir head, Library of Philosophical Series, London, 1953, p, 27
  3. राधाकृष्णन उपनिषदों की भूमिका, राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली, तृतीय संस्करण, 1976, पृष्ठ-54
  4. विवेकानन्द साहित्य, खण्ड षष्ट्म, अद्वैत आश्रम, कलकत्ता, 2006, पृष्ठ-243
  5. तिवारी, भरत कुमार, विवेकानन्द का दार्शनिक चिन्तन, भारतीय भाषा पीठ, नई दिल्ली, 1988, पृष्ठ-13
  6. (पराचःकामानुनंयन्ति बालास्ते मृत्योर्यन्ति-विततस्य पाषम्, अच धीरा अमृतत्वं विदित्वा ध्रुवमध्रुवोष्विह न प्रार्थयन्त।)
  7. वल्ली-1, श्लोक 2, संवत् 2012, पृष्ठ-107 तिवारी, भरत कुमार, विवेकानन्द का दार्शनिक चिन्तन, भारतीय भाषा पीठ, नई दिल्ली, 1988, पृष्ठ-13
  8. विवेकानन्द साहित्य, खण्ड अष्ट्म, अद्वैत आश्रम, कलकत्ता, 2004, पृष्ठ-113
  9. तिवारी, भरत कुमार, विवेकानन्द का दार्शनिक चिन्तन, भारतीय भाषा पीठ, नई दिल्ली, 1988, पृष्ठ-17
  10. नरवणे, बी0एस0, आधुनिक भारतीय चिन्तन, हि0अ0, नेमिचन्द्र जैन, राजकमल प्रकाषन प्रा0लि0, दिल्ली, 1966, पृष्ठ-96-97

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