( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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वर्तमान परिवेश में निर्गुण संतकाव्य की प्रासंगिकता

    1 Author(s):  DR. KANCHANMALA PANDIT

Vol -  3, Issue- 3 ,         Page(s) : 40 - 49  (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

पाश्चात्य सभ्यता के निरंतर अंधानुकरण ने भारतीय संस्कृति के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। भौतिकवादी विचारों ने भारतीय संस्कारों को अपदस्थ कर दिया है। आधुनिक भारतीयों ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों को लगभग विस्मृत कर दिया है। ऐसे भारतीय सामाजिक परिवेश में आज का युवा वर्ग पोषित एवं पल्लवित हो रहा है। आज प्रत्येक युवा ने बड़े-बड़े सपने संजोए रखे हैं। अपने इन्हीं सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में वे निरंतर तनाव, हिंसा, अकेलेपन, नशा, कामुकता एवं क्रोधादि मानसिक विकारों के साथ अपराध की गिरफ्त में आ रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण भारतीय समाज है, क्योंकि यह समाज युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा तो दे देता है परन्तु सफलता का सही मार्ग निर्देशित नहीं कर पाता है। जीवन में सही-गलत, अच्छे-बुरे की पहचान के अभाव में युवा-पीढ़ी भटक जाती है।

1. श्री दयालुदासजी महाराज की अनुभव वाणी (भाग-1)- संपादक श्री पुरूषोत्तमदास जी महाराज शास्त्री- श्री उत्तम को अंग- छंद संख्या 2, पृ.सं. 228
2. श्रामसनेही संतकवि हरिरामदास के काव्य का सामाजिक-साहित्यिक मूल्यांकन- डाॅ. गोपीकिशन चितारा- पृ.सं. 71
3. कबीर गं्रथावली- संपादक पारसनाथ तिवारी- पद 55
4. कबीर गं्रथावली- संपादक माताप्रसाद गुप्त- पद 9/2
5. युगप्रवर्तक संत गुरू रविदास- संपादक आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद- पृ.सं. 159
6. वही- पृ.सं. 165
7. हिन्दी काव्य की निर्गुणधारा- डाॅ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल- पृ.सं. 159
8. श्री दयालुदासजी महाराज की अनुभव वाणी (भाग-1), अथ कुसंगत को अंग, छंद संख्या 1, पृ.सं. 302
9. वही- श्री संगत को अंग, छंद संख्या 10, पृ.सं. 306
10. युगप्रवर्तक संत गुरू रविदास- पृ.सं. 82
11. कबीर- व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सिद्धान्त- डाॅ. सरनामसिंह शर्मा- पृ.सं. 366
12. हिन्दी काव्य की निर्गुण धारा- पृ.सं. 231
13. युगप्रवर्तक संत गुरू रविदास- पृ.सं. 82
14. रामसनेही संत कवि दयालदास और उनका काव्य- डाॅ. गोपीकिशन चितारा- पृ.सं. 301
15. रामसनेही संतकाव्यः परम्परा और मूल्यांकन (रेण के विशेष सन्दर्भ में)- डाॅ. सतीष कुमार-
 पृ.सं. 191
16. कबीर समग्र- प्रो. युगेश्वर, पृ.सं. 443
17. श्री दयालुदासजी महाराज की अनुभव वाणी (भाग-1)- श्री सांच को अंग, छंद सं. 2, पृ.सं. 275
18. श्रामसनेही संतकाव्य: परम्परा और मूल्यांकन (रेण के विशष्ेा संदर्भ में), पृ.सं. 186
19. श्री दयालुदासजी महाराज की अनुभव वाणी (भाग-1), श्री सांच को अंग, छंद सं. 8, पृ.सं. 229
20. कबीर समग्र, पृ.सं. 517
21. कबीरः व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सिद्धान्त पृ.सं. 651
22. हिन्दी- काव्य की निर्गुणधारा- पृ.सं. 234
23. श्री दरियाव दिव्य वाणी- संपादक यशोराज शास्त्री, उपदेश का अंग, छंद सं. 30, पृ.सं. 313
24. वही- उपदेश का अंग, छंद सं. 31, पृ.सं. 313
25. रामसनेही संतकाव्यः परम्परा और मूल्यांकन (रेण के विशेष सन्दर्भ में)- पृ.सं. 189
26. वही, पृ.सं. 204
27. श्री हरिरामदासजी महाराज की अनुभववाणी, आदि सम्पादक रामस्नेही सम्प्रदाय सीथलपीठ के नवमाचार्य श्री 1008 श्री भगवद्दासजी महाराज, अथ मछी को अंग, छंद सं. 1, पृ.सं. 191
28. कबीर: व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सिद्धान्त, पृ.सं. 296
29. वही, पृ.सं. 490
30. रामसनेही संत कवि दयालदास और उनका काव्य, पृ.सं. 313
31. संत साहित्य के प्रेरणा स्रोत, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी, पृ.सं. 123
32. वही, पृ.सं. 315
33. वही, पृ.सं. 125
34. रामसनेही सन्तकाव्य: परम्परा और मूल्यांकन (रेण के विशेष सन्दर्भ में), पृ.सं. 167
35. कबीर समग्र, पृ.सं. 40
36. श्री हरिरामदासजी महाराज की अनुभव वाणी, अथ चांणिक कौ अंग, छंद सं.2, पृ.सं. 106
37. श्री दरियाव दिव्यवाणी, साध का अंग, छंद सं. 9, पृ.सं. 281

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