International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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ऋषि वसिष्ठ-दृष्ट अथर्ववेदीय सूक्तों में वर्णित राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन दर्शन
1 Author(s): JOGINDER SINGH
Vol - 7, Issue- 3 , Page(s) : 353 - 361 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
वसिष्ठ पद श्रेष्ठ कर्मो को उत्पन्न करने वाली ‘वस्‘ धातु से व्युत्पन्न हुआ माना जाता है। संहिता एवं ब्राह्मण ग्रन्थों में वसिष्ठ पद से श्रेष्ठ प्राण, वाणी आदि अर्थ लिए गए है। श्रेष्ठत्व और वासत्व के कारण ही उसे वसिष्ठ कहा जाता है। भारत की प्राचीन संस्कृति ज्ञान के लिए वैदिक साहित्य का परिशीलन अनिवार्य है। अथर्ववेद अन्य वेदों की भांति भारत का एक धार्मिक ग्रन्थ है। जिसमें जन सामान्य के विविध-मन्त्र और विश्वासों का वर्णन है। तथापि इसमें लौकिक विषयों का समावेश है। वेद का वास्तविक अर्थ है ज्ञान, इस ज्ञान से परवर्ती चिन्तन की सम्पूर्ण धारा को प्रवाहित किया ऋषियों ने अपनी तपो साधना के द्वारा प्राप्त आलौकिक शक्तियों का उपयोग मानवीय कल्याण की दृष्टि से किया। वैदिक ऋषियों का साक्षात्कार आन्तरिक ज्ञान नेत्रों से अनुभूत कर उसे मन्त्रों के रूप में प्रकाशित किया अथर्ववेद के द्रष्टा अथर्वा, अड्गिरस, भृगु, वसिष्ठ आदि की उत्कृष्ट परम्परा रही है।