( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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समकालीन हिन्दी कविता में जनवादी चेतना

    1 Author(s):  DR. RAJINDER SINGH

Vol -  7, Issue- 11 ,         Page(s) : 44 - 53  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

‘जनवाद’ शब्द अंग्रेजी के ‘क्मउवबतंबल’ शब्द का हिन्दी रूपांतरण है। जनतंत्र, प्रजातंत्र, लोकतन्त्र, लोकशाही आदि इसके पर्यायवाची शब्द हैं। ‘क्मउवबतंबल’ शब्द ग्रीक भाषा के क्मउवे ;देमोसद्ध और ज्ञतंजमतपद ;ÿेटिनद्ध नामक शब्दों के योग से बना है। क्मउवे का अर्थ है - जनता तथा ज्ञतंजमपद का शाब्दिक अर्थ है - शासन करना। इस प्रकार क्मउवबतंबल का अर्थ हुआ - जनता का शासन। अतः जनतंात्रिक या flगणतांत्रिक शासन वह है जिसमें सर्वोच्च सŸाा सारी जनता अथवा उसके समर्पित लोगों के हाथों में होती है।fi 1 गणतंत्र में यदि शासन सŸाा जनता के हाथ में होती है तो वह जनतंत्र कहलाता है और यदि शासन जनता के एक विशेष भाग के हाथों में होता है तो ऐसे शासन को अभिजात तंत्र कहा जाता है। इसी प्रकार लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार का रूप जनता की, जनता के द्वारा एवं जनता के लिए होता है। 2 इस छोटी-सी परिभाषा में लोकतंत्र का मूल रूप समाहित है। इसमें जनता ही सर्वशक्तिमान एवं सर्वोपरि है। प्रजातंत्र के संबंध में गांधी जी ने कहा है कि वह flकभी भी हिंसा और दण्ड-शक्ति पर आधारित नहीं रह सकता। व्यक्ति के पूर्ण और स्वतन्त्र विकास के लिए जनतांत्रिक समाज को परस्पर सहयोग और सद्भाव, प्रेम और विश्वास पर आधारित रहना चाहिए। मानवता का विकास इन्हीं के सिह्ान्तों के आधार पर आज तक हुआ है और आगे भी होगा।fi 3

1. शार्ल लुई मोंतेस्क्यू: द स्पिरिट आॅफ लाॅज, पृú 8
2. इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (भाग - 1), पृú 1206
3. डाॅ. धीरेन्द्र मोहनदत्त, महात्मा गाँधी का दर्शन, पृ. 103
4. सम्पा. भोलानाथ तिवारी एवं महेन्द्र चतुर्वेदी, संक्षिप्त हिन्दी-अंग्रेजी कोश, पृ. 91
5. सम्पा. महेन्द्र चतुर्वेदी एवं ओम प्रकाश गाबा, व्यावहारिक हिन्दी पर्यायवाची कोश, पृ. 69
6. वामन शिवराम आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 386
7. डाॅ. रामनारायण शुक्ल, जनवादी समझ और साहित्य, पृ. 01
8. मुक्तिबोध, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, पृ. 76
9. धूमिल, संसद से सड़क तक, पृ. 124
10. वही, कल सुनना मुझे, पृ. 33
11. उदय प्रकाश, सुनो कारीगर, पृ. 71
12. गोरख पाण्डे, जागते रहो सोने वालों, पृ. 47
13. धूमिल, संसद से सड़क तक, पृ. 108
14. वहीú, सुदामा पाण्डेय का प्रजातन्त्र, पृ. 26
15. गोरख पाण्डे, जागते रहो सोने वालों, पृ. 47
16. नागार्जुन, चुीन हई रचनाएँ ;भाग - 2द्ध, पृ.168
17. लीलाधर जगूड़ी, इसी यात्रा में, पृ. 60
18. अरूणकमल, अपनी केवलधारा, प. 138
19. लीलाधर जगूड़ी, बची हुई पृथ्वी, पृ. 12
20. वही. वही., पृ. 22
21. आलोक धन्वा, नाम - 2, पृ. 16

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