( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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स्वामी विवेकानंद: श्रेष्ठ मानवतावादी

    1 Author(s):  DR. RANJANA NATH

Vol -  7, Issue- 7 ,         Page(s) : 169 - 172  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

श्जो भगवान मुझे अन्न नहीं दे सकता वह मुझे स्वर्ग में अनन्त सुख के साथ रखेगा,इस बात पर मंै विश्वास नहीं करताश्- स्वामी विवेकानंद की इस उक्ति में हमें उनके मानवतावादी रूप की स्पष्ट छवि दिखाई पड़ती है। आज उनके जन्म के 150 वर्ष पूरे हो जाने के बाद भी हमारे जीवन में वे विचारों के रूप में मौजूद है। यहाँ मेैं उनके मानवतावादी रूप को उद्घाटित करना चाहती हूँ। वास्तव में मानवतावाद की आत्मा मानवप्रेम और मानव सेवा में वास करती है। संपूर्ण विश्व के समस्त मनुष्यों के दुःख-दर्द को मिटाने के लिए व्रती होना और उनके प्रति प्रेम और सहानुभूति की भावना रखना ही मानवतावाद का मूलमंत्र होता है, जिसका दर्श हमें विवेकानंद के जीवन और कर्मो में मिलता है। वे सपनों में डूबे रहनेवाले दार्शनिक नहीं थे बल्कि वास्तविक रूप में समस्त मानव जाति की उन्नति को आकार देने के आकांक्षी थे। स्वामी विवेकानंद अपने जीवन में पूर्वी और पश्चिमी दोनों सभ्यताओं के हजारों लोगों के साथ मिले थे, उनकी दुर्दशा भी उन्होंने अपनी आँखों से देखी थी और अपने ज्ञान तथा दूरदर्शिता से इसके प्रतिकार का उपाय भी उन्होने बताया था। उनका मानना था कि भारत और अन्यान्य गरीब देशों की तथा धनी पश्चिमी देशो की जरूरतें अलग-अलग तरह की है। पराधीन भारत के नागरिक के रूप में अपने देशवासियों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय रो पड़ता था। कभी-कभी वे ईश्वर से भी अपनी नाराजगी प्रकट करते थे जिसका उनके लेखों से पता चलता है। मदªास (चेन्नई) के समुदª किनारे रहने वाले मछुआरों की गरीबी और दुर्दशा देखकर उनके मुँह से निकल पड़ा था कि श्हे भगवान, तुमने इनकी रचना क्यों की और जब रचना की तो फिर इनके लिए मनुष्यों की तरह जीने की व्यवस्था क्यों नहीं की?(1) स्वामीजी मानते थे कि भारत की उन्नति गरीबों की उन्नति में निहित है। देश की उन्नति का निर्धारण कभी भी 90ः लोगों को नजरअंदाज कर सिर्फ 10ः लोगांे की उन्नति के आधार पर नहीं किया जा सकता। देश के दरिदª, अशिक्षित, किसान, मछुआरे, मोची, मेहतर, श्रमिक इत्यादि की जीवन-दशा उन्नत होने पर ही देश की वास्तविक उन्नति होगी। अपने देशवासियों की कष्टप्रद गरीबी और अशिक्षा मिटाने के लिए स्वामीजी ने जीवन-भर प्रयत्न किए थे।

1. युगनायक विवेकानंद-स्वामी गंभीरानंद, प्रथम खंण्ड,1992, च .223
2. चिन्तानायक विवेकानंद - स्वामी लोकेश्वरानंद, 1989, च .292
3. युगनायक विवेकानंद, द्वितीय खण्ड, च .27
4. वाणी और रचना, स्वामी विवेकानंद, सप्तम खंड, च .133
5- Prabuddha Bharat, July 1932,P-352

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