( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 2083    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

भारतीय संस्कृति में लोक कला एवं जनजातीय कला का स्वरुप

    1 Author(s):  SACHIV GAUTAM

Vol -  7, Issue- 11 ,         Page(s) : 109 - 117  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

अभिव्यक्ति मनुष्य की प्राकृतिक प्रवृत्ति है। अपने अन्दर के भावों को प्रकट करना उसकी पहली प्राथमिकता है, और उसकी इन भावनाओं का आधार है- मनुष्य का परिवेश। मुनियों, ज्ञानियों और विद्वानों का मत है, की आदि काल में जब भाषा और लिपि-चिह्नों का विकास नही हुआ था, तब मनुष्य रेखाओं के संकेत से ही व्यक्ति स्वयं को अभिव्यक्त करता था। आदि कालीन गुफाओं में मिले शैलचित्र इस बात के प्रमाण है। इस समय जीवन के अन्य पक्ष अभी विकसित होने थे, इसीलिए तत्कालीन भारतीय चित्रांकन भी इसी विकास तक ही सिमित रहे हैं।

  1. र0वि0 साखलकर, आधुनिक चित्र्ाकला का इतिहास, जयपुर-2010
  2. ए0के0 अग्रवाल, कला विलास भारतीय चित्र्ाकला का विवेचन (नवीन संस्करण, 2002) मेरठ-2007
Website-
  1. http://drgptgmmh.blogspot.in/2011/06/blog­post_27.html
  2. http://www.apnimaati.com/2014/08/blog­post_66.html

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details