( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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वेदों में विश्वशानित और समता की भावना

    1 Author(s):  MUKESH KUMAR

Vol -  4, Issue- 2 ,         Page(s) : 368 - 374  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्राचीन भारतीय वाÄमय में वेद समस्त ज्ञान-विज्ञाान के भण्डार हैं। ये अनादि, अपौरुषेय तथा साक्षात्कृतध्र्मा र्इश्वर के नि:श्वासभूत हैं- ''यस्य नि:Üवसितं वेदा:। जो आदिकाल से ही प्रत्येक मानव, समाज और राष्ट्र की समृ(ि, उत्थान एवं रक्षा के लिए उपदेश देते रहे हैं। अतएव विश्वशांति और समता की भावना ही वेदों का परम èयेय है। यही कारण है कि अनेक मन्त्रा शानित को समर्पित हैं। Íषि प्रार्थना करता है कि - ''धौ: शानितरन्तरिक्षं शानित: पृथिवी शानितराप: शानितरोषध्य: शानित:। वनस्पतय: शानितर्विश्वे देवा: शानितब्र्रह्रा शानित: सर्वं शानित: शानितरेव शानित: सा मा शानितरेधि।

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