स्त्री-चेतना की अवधारणा : वैदिक से वैज्ञानिक युग तक
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Author(s):
MANOJ KUMAR SINGH
Vol - 4, Issue- 3 ,
Page(s) : 602 - 616
(2013 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
चेतना का शाबिदक अर्थ समझ अथवा ज्ञानात्मक मनोवृत्ति है, जिसका संबंध जीवन-दृषिट से होता है। जीवन-दृषिट वह सारतत्व होता है, जिसका स्वरूप इतिहास-वर्तमान, अच्छा-बुरा,अनुकूल-प्रतिकूल,नया-पुराना आदि के परिसिथतिबोध और द्वंद्व से विनिर्मित होता है। अच्छा-बुरा, नया-पुराना, इतिहास और वर्तमान का द्वंद्व निश्चय ही यथासिथतिवाद का विरोध और नवीन अवधारणाओं का वाहक होता है।
- स्त्री अस्मिता: साहित्य और विचारधारा, संपादकः जगदीश्वर चतुर्वेदी, सुधा सिंह, आनन्द प्रकाशन सं - 2004, पृष्ठ- 206
- औरत होने की सजा: अरविन्द जैन, राजकमल प्रकाशन दूसरी आवृत्ति-1999 पृष्ठ-10-11
- वही, पृष्ठ-12-13
- पहल: 86,सं0-ज्ञानरंजन,(देखें-हिन्दू वर्ण-व्यवस्था में स्त्री, राम चंद्र सरोज, पृृष्ठ-133
- पहल - 86,सं0-ज्ञानरंजन,(देखें-हिन्दू वर्ण-व्यवस्था में स्त्री, राम चंद्र सरोज, पृष्ठ-132
- औरत कल, आज और कल:आशारानी व्होरा, कल्याणी शिक्षा परिषद,नयी दिल्ली संस्करण-2006 पृष्ठ-12,
- पहल - 86, सं0-ज्ञानरंजन,(देखें-हिन्दू वर्ण-व्यवस्था में स्त्री, राम चंद्र सरोज,पृष्ठ-141)
- स्त्री उपेक्षिता: सीमोन-द बुआ,(अनुवाद: प्रभा खेतान)
- शिक्षा और संस्कृति: जैनेन्द्र कुमार, समानान्तर प्रकाशन, नई दिल्ली,, संस्करण-1983, पृष्ठ-67
- स्त्री, परंपरा और आधुनिकता: संपादक-राजकिशोर वाणी प्रकाशन,दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2004, पृष्ठ-24
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