चन्द्रकांत देवताले की कविता में पर्यावरण विमर्श
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Author(s):
PROF. ANUP SINGH
Vol - 15, Issue- 3 ,
Page(s) : 142 - 147
(2024 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
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Abstract
समकालीन हिन्दी कविता अपनी पूर्ववर्ती काव्यधाराओं से कई मायनों में अलग है और विषिष्ट भी। अपने परिवेष के प्रति जितनी गहरी संवेदना और सजगता कविता की इस धारा में है, वह कदाचित अन्यत्र नहीं।
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