दबायी जाती स्त्रियों का विद्रोही स्वर: ‘रंग राची’ के संदर्भ में
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Author(s):
GEETHU V KRISHNAN
Vol - 8, Issue- 11 ,
Page(s) : 59 - 64
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
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Abstract
पुरुष द्वारा संचालित समाज में स्त्री सर्वाधिक उपेक्षित और दमित है जिसे हमेशा लिंग की दृष्टि से हाशिये पर धकेल दिया गया है।दुनिया की बेहतरीन सृष्टि होकर भी अपने अस्तित्व के लिए सतत संघर्ष करना उसकी नियती बन गयी है।पुरुष की वर्चस्ववादी मानसिकता के कारणअपने अधिकारों से वंचित होकर समाज के दायरे में खडे होने के लिए वह विवश है।उसकी गुलामी की यह दास्तान सदियों पुरानी है जिसका देश व काल जैसा कोई बंधन नहीं है।यानी समय,स्थान और चेहरे ही बदलते हैं पर उसकी दासता की कहानी कभी नहीं बदलती।आज शिक्षा और कानून से उसकी हालत काफ़ी सुधर गयी है।फिर भी अपने ऊपर पडी बेडियों को काट डालने में वह पूरी तरह सक्षम नहीं हुई है।
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