लोक-कला एक अध्ययन
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Author(s):
HEMA SHISHIR TRIVEDI
Vol - 8, Issue- 11 ,
Page(s) : 65 - 71
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
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Abstract
लोक कला हमारे प्रतिदिन के जीवन के विभिन्न रूपों में गुथी है । यह कला शास्त्रीय बंधनों से मुक्त होती है । इसकी ऐतिहासिक कला परम्परा का अपना अलग ही स्वरूप है । लोककला धार्मिक भावनाओं और आध्यात्मिक अनुभवों पर विशेष आधारित है ।१ इसमें मूल सांस्कृतिक विशेषताओं एवं मौलिक परम्पराओं का परित्याग नहीं किया जाता है, बल्कि नव चेतना का वास इसके अन्त:करण में यथावत् रहता है । लोक मानस सृजन परम्परा एवं संस्कृति की मूल भावनाओं से सदा ओतप्रोत रहा है ।
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