( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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पारम्परिककलाओं के उन्नयन में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर का योगदान

    1 Author(s):  SACHIN DADHICH

Vol -  9, Issue- 10 ,         Page(s) : 22 - 28  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

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Abstract

मानव ने सर्वप्रथम अपने भावों की अभिव्यक्ति को कलाओं के माध्यम से व्यक्त किया जो समयकाल के अनुरूप नित् परिवर्तन माध्यमों में होता रहा है। कलाएं प्राचीन काल से ही विभिन्न शाखाओं के रूप में विघमान रही है। इस संदर्भ में कला अभिव्यक्ति में सुख अनुभूति का मूल भाव ही बना रहा। किंतु फिर भी मानव ने समय≤ पर अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति को उजागर किया। इस संदर्भ में जब लोक जीवन से जुड़ी पारंपरिक कलाओं की बात करें तो स्पष्ट मोटे रूप में इन कलाओं में लोक जीवन का सुगंधित आभास महसूस होता है। यही नहीं वरन इन्हें एक ऐसी परंपरा के रूप में देखा जाता है। जो कि परिवार जनों के साथ-साथ वंशानुगत रूप में भी प्रचलित दिखाई देती थी। जहां तक हमारी सोच, समझ और स्मर्ति के साक्ष्य जा सकते हैं। लोक कला संस्कृति उससे भी आगे विस्तृत है। लोक शब्द का अर्थ दृष्टा, इस अर्थ में उसे परमात्मा भी कहा जा सकता है। जिस प्रकार परमात्मा लोक का दृष्टा है। उसी प्रकार लोक स्वयं में समाहित सर्वस्व का स्रष्टा और दृष्टा है।


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