International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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प्रसाद और भारती के काव्य का प्रकृति-परिवेश प्रेम व सौन्दर्य एवं भक्ति परिवेश की दृष्टि से मूल्यांकन
1 Author(s): SUNITA DEVI
Vol - 1, Issue- 3 , Page(s) : 97 - 106 (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
इस सृष्टि में जो भी व्यवस्था है वह सब मूलतः प्रेम के कारण है, किन्तु प्रेम का स्वरूप तथा उसको समझना सरल नहीं। प्रेम को एक ऐसी भावनात्मक अनुभूति कहा जा सकता है जिसको शब्दों के माध्यम से स्पष्ट करना असम्भव है। सौर्न्य की भांति ही प्रेम भीं अत्यन्त अस्पष्ट एवं विदास्पद रहा है। यद्यपि ‘प्रेम’ एक साधारण एवं सर्वाविदित भाव है जो इस जगत् के सभी चेतन प्राणियों में पाया जाता है। परशुराम चतुर्वेदी तो प्रकृति के अंगों में भी प्रेम भाव देखते हैं ‘‘आकाश के जितने भी नक्षत्र-मण्डल हैं, वे किसी इस प्रेम के ही किसी अपूर्व आकर्षण बद्ध एवं संचालित है और सूर्य एवं चन्द्रमा भी उसी नियम के पालन में लगे हुए हैं।