International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
कर्म एवं कर्मफल विश्लेषण : पुराण एवं जैनग्रन्थों के सन्दर्भ में
1 Author(s): DR. JYOTI BOTHRA
Vol - 13, Issue- 1 , Page(s) : 48 - 57 (2022 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
कर्म शब्द विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है | कर्म का अर्थ कार्य है तो वह संस्कार भी है जो किये हुए कार्य का फल प्रदान करते हैं | उदाहरणार्थ किसी ने दान दिया फिर उसको लाभ मिला | दानरूप कार्य के कारण एक ऐसा कर्मबंध रूप संस्कार जीव के साथ जुड़ गया जिसके फलस्वरूप भविष्य में उस व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति हो गई | अतः कार्य एवं परिणाम के बीच की कड़ी कर्म है , जिसके फल भोगना ही पड़ता है | “कर भला सो हो भला ” “कर बुरा तो हो बुरा ” “जैसी करनी वैसी भरनी ” जैसी अनेक सूक्तियाँ प्रसिद्ध है ही |