International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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हिन्दी वर्तनी
1 Author(s): DR.NIKETA
Vol - 7, Issue- 1 , Page(s) : 406 - 409 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। हमारे भाव समग्र एवं शुद्ध रूप से सम्प्रेषित हों, इसके लिए हमारी भाषा की वर्तनी का शुद्ध होना आवश्यक है। वर्तनी-शुद्धि के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है। वैदिक परम्परा से ही हम वर्तनी शुद्धि-अशुद्धि पर विचार करते आए हैं। जहाँ महाभाष्यकार पतंजलि ने व्याकरण के नियमों-उपनियमों का विपुल उल्लेख किया है, वहीं वर्तमान वैयाकरणों ने भी इस दिशा में अपने-अपने स्तर से वर्तनी में हो रहे परिवर्तनों एवं उनकी शुद्धि-अशुद्धि पर विशेष ध्यान दिया है। कुछ चिंतकों ने वर्तनी शुद्धि से व्यक्ति के सभ्य होने को जोड़ा है, तो किसी ने शुद्ध वर्तनी के प्रयोगकर्त्ता को अनुशासित माना है।