International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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आधुनिक हिन्दी नाटकों में यथार्थ एवं परम्परागत मूल्य विघटन से जूझती मध्यवर्गीय चेतना
1 Author(s): DR. SHASHI PRABHA
Vol - 10, Issue- 7 , Page(s) : 385 - 389 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
साहित्यकार अपने युग का दृष्टा, भोक्ता और निर्माता एक साथ होता है। साहित्य अपने युगीन परिवेश में आकार पाता है, इसलिए युगीन प्रवृत्तियों के प्रति समर्थन और विरोध के स्वर उसमें मिलेजुले रहते हैं। साहित्यकार जो देखता है, जो भोगता है उसी पर अपने अन्तर्मन में चिंतन करता है तथा अपनी प्रवृत्ति संस्कार शिक्षा के अनुरूप अपनी प्रतिक्रिया देता है। इस प्रकार साहित्यकार दृष्टा, भोक्ता और निर्माता की भूमिकाएं एक साथ निभाता है।