International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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कालचक्रधारी श्रीकृष्ण तथा सर्ववेदमयी गीता
1 Author(s): SEEMA BANSAL
Vol - 5, Issue- 4 , Page(s) : 110 - 115 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
फ्कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्य् अर्थात श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान है। दशावतारों में श्रीकृष्ण ही पूर्णावतार माने गये हैं। भारत भूमि पर जन्म लेकर सम्पूर्ण धर्मिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन को प्रभावित कने वाली महान् विभूतियों में श्रीकृष्ण का नाम सर्वोपरि है। समाज के चरित्रा का जब हृास होने लगता है, उसके शीर्षस्थ व्यक्ति जन ध्र्म के वास्तविक रूप के ज्ञान से व×िचत हो जाते हैं अथवा जीवन में उसकी अपेक्षा नहीं समझते और ऐसे ही जब अध्र्म ही ध्र्म का स्थान ग्रहण कर लेता है, तब श्री भगवान अवतार ग्रहण करते हैं। श्रीकृष्ण ने अपने जन्म लेने के कारण का स्पष्टीकरण गीता के चैथे अध्याय के सातवें- आठवें श्लोक में किया है-