( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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चित्तप्रसादन एवं विश्वबन्धुत्व - एक विमर्ष

    1 Author(s):  DR. HARISH KUMAR

Vol -  14, Issue- 3 ,         Page(s) : 595 - 600  (2023 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

‘‘चित्त’’ अर्थात् मन, आत्मा इत्यादि। वस्तु एक परन्तु नाम अनेक। भारतीय दार्शनिकों ने भी इसे भिन्न-भिन्न रूप में व्याख्यायित किया है। परन्तु सार रूप में यदि देखा जाए तो वह सभी एक ऐसी वस्तु को इंगित करते है जो कि व्यक्ति के भीतर विद्यमान है।

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