( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 141    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

आधुनिक जीवन मे सुदर्शन रत्नाकर जी की जीवन शेली व परवेश का अध्ययन

    1 Author(s):  GUNWATI

Vol -  5, Issue- 7 ,         Page(s) : 360 - 364  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

किसी भी बात को संश्लिष्ट रूप में कहना बहुत कठिन काम है ।इसके लिए दो बातें बहुत ज़रूरी हैं-भाव, विचार, कल्पना की स्पष्ट -क्रिस्टल क्लिअर और सही अवधारणा; दूसरा तदनुरूप सुलझी हुई ,कसी हुई भाषा एवं प्रस्तुति । लघुकथा के सन्दर्भ में यह बात पूरी ताह से सटीक कही जा सकती है । कुछ का कुतर्क है कि छोटी विधा में लिखने से कोई रचनाकार बड़ा नहीं बन सकता । ऐसे लोगों को चाहिए कि वे दूर न जाएँ-प्रसाद जी का आँसू काव्य पढ़ें। चार पंक्तियों और 14-14 मात्राओं का छोटा-सा छन्द । क्या किसी विधा को छोटी विधा कहना भी न्याय -संगत होगा? रचना का सन्देश कितनी दूर तक जाता है,जनमानस तक उसकी कितनी पैठ है, इसी में विधा की सफलता है। मोटे-मोटे आलोचना-ग्रन्थों की पठनीयता बहुत सीमित होती है या न के बराबर होती है।प्राय: इस तरह के पोथे पुस्तकालय की अल्मारियों में दम तोड़ देते हैं और अन्तत: दीमकों का आहार बनते हैं । जिसको केवल लेखक ही समझे , वह न कोई विधा है और न साहित्य का प्रकार.

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details