( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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निराला के काव्य में व्यंग्यः एक विवेचन

    1 Author(s):  ANITA

Vol -  5, Issue- 10 ,         Page(s) : 13 - 19  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

षोध-पत्र सारः- प्रस्तुत षोधपत्र में महाकवि निराला के काव्य में व्यंग्य अभिव्यक्ति को लेकर विचार किया गया है। महाप्राण निराला हिन्दी के छायावादी काव्य के चार आधार स्तम्भों में से एक आधार स्तंभ है। उनकी ओजस्विता, प्राणवता, मौलिक उद्भावना, संगीतमयता, निर्मम, निश्पक्ष चित्र व्यंजना, अनुभूति के साथ कल्पनाषीलता ऐसी विषेशताएॅ है जो हिन्दी साहित्य के अन्य कवियों से उन्हें अलग करती है। ऐसी विषेशताएँ अन्य कवियांे मे एक साथ नहीं मिलती है। व्यंग्य साहित्य की एक सरल दिखने वाली, किन्तु कठिन षैली है। व्यंग्य के दो अर्थ मिलते है एक गूढ अर्थ में उसकी व्यंजनावृति और दूसरी ताना, बोली या चुटकी लेना, अर्थात समाज की बुराईयो को टेढे़ षब्दांे में प्रिय लगने वाली षैली में कहना व्यंग्य कहलाता है। निराला इसमें सिद्वहस्त थे।

1. आधुनिक हिन्दी कविता- डाॅ0 सरिता वषिश्ट- पृश्ठ -37
2. हिन्दी व्यंग्य विधा षास्त्र और इतिहास-डा0 बापूराव देसाई पृ020
3. राग विराग- राम विलास षर्मा पृ0 37
4. प्रतियोगिता साहित्य सीरिज- डा0 अषोक तिवारी पृ0660
5. प्रतियोगिता साहित्य सीरिज- डा0 अषोक तिवारी पृ0660
6. प्रतियोगिता साहित्य सीरिज- डा0 अषोक तिवारी पृ0660
7. आधुनिक हिन्दी काव्य सरिता, डा0 उमेषचन्द मित्र ‘षिव’ पृ085
8. प्रतियोगिता साहित्य सीरिज डा0 अषोक तिवारी पृ0110
9. दान (अनामिका) निराला पृ0 25
10. महगू महगा रहा (नये पत्ते) निराला पृ0106
11. थोड़े के पेट मे बहुतो का आना पड़ा (नये पत्ते) निराला पृ041
12. मास्को डायलाग्स (नये पत्ते) निराला पृ0 25,26
13. बेला-निराला पृ068
 

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