International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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अनुवाद सिद्धांत: उद्भव, विकास एवं वर्तमान स्वरूप
1 Author(s): TRIPTI SRIVASTAVA
Vol - 5, Issue- 10 , Page(s) : 83 - 88 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
भारतीय एवं पाश्चात्य दोनो ही परम्पराओं में अनुवाद का एक लम्बा सिलसिला मिलता है. पाश्चात्य परम्परा में जहां लम्बे समय तक बाइबिल का अनुवाद ही केन्द्रीय रहा वहीं भारतीय परम्परा में वैदिक और वैदिकोत्तर साहित्य पर टीका और भाष्य की परम्परा समृद्ध रही. दोनो परम्पराओं में मुख्य अंतर यह रहा कि पश्चिम में जहां अंतर्भाषिक अनुवाद का जोर रहा वहीं भारतीय परम्परा में अंतःभाषिक अनुवाद का जोर रहा. बाइबिल का ओल्ड टेस्टामेंट हिब्रू में होने के कारण ई. पूर्व तीसरी-दूसरी शती तक ही बाइबिल के ग्रीक अनुवाद की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी और इस प्रकार सबसे पहला अनुवाद हिब्रू से ग्रीक में ई.पू. तीसरी-दूसरी शती में सम्पन्न हुआ. हालांकि भारत भी आरम्भ से ही विविध भाषाओं की भूमि रहा है परंतु अंतर भाषिक अनुवाद का इतना पुराना कोई साक्ष्य या सूचना भारतीय परम्परा में नहीं.