भारतीय कामकाजी महिलाओं की परिस्थिति का समाजशस्त्रीय अध्ययन
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Author(s):
DR. BHAVNA DOBHAL
Vol - 5, Issue- 12 ,
Page(s) : 246 - 249
(2014 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
प्राचीन काल में जहां एक ओेर महिलायें सम्पत्ति के अधिकारों से वंचित थी, वहीं दूसरी ओर उन्हें स्वतन्त्र रुप से किसी भी प्रकार के रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं थे। भारतीय महिला का बाहरी कार्य-क्षेत्र में आना, समाज की दृष्टि में अभी कुछ दशक तक वांछनीय था, लेकिन स्वतन्त्र भारत में शिक्षा के प्रसार द्वारा वैज्ञानिक सोच ने उन्हें, रूढि़यों को तोड़कर आत्म निर्भर होकर जीने की प्रेरणा दी। भारतीय समाज में महिलाएँ एक लम्बें समय से अवमानना, यातना और शोषण का शिकार रही हैं। आज शनैः-शनैः महिलाओं को पुरूषों के जीवन में महत्वपूर्ण, प्रभावशाली और अर्थपूर्ण सहयागी भले ही माना जाने लगा है, किन्तु कुछ दशक पहले तक उनकी स्थिति दयनीय थी। विचारधाराओं, संस्थागत रीति-रीवाजों और समाज में प्रचलित प्रतिमानों ने उनके उत्पीड़न में काफी योगदान दिया है। आज भी कुछ व्यवहारिक रिवाज पनप रहे हैं, जो नारी उत्पीड़न को बढ़ावा देते हैं।
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