International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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समकालीन साहित्य की चुनौतियाँ : एक चर्चा
1 Author(s): SUMITI
Vol - 5, Issue- 12 , Page(s) : 338 - 343 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
समकालीन रचनाकार एक ऐसे वातावरण में जी रहा है जहाँ यथार्थ को समग्र रूप में देखने के बजाय टुकड़ों में देखने का प्रचलन है. युगों तक हाशिए पर रहने के लिए विवश विविध समुदाय आज अपनी अस्मिता को रेखांकित कर रहे हैं जिससे विविध विमर्श सामने आए हैं. इस संदर्भ में डॉ. प्रतिभा मुदलियार (मैसूर) ने कहा कि ‘समकालीन हिंदी कविता में मानवाधिकारों से वंचित वर्ग ने अपनी अस्मिता कायम करने के लिए अभिव्यक्ति का शस्त्र अपनाया. हिंदी दलित विमर्श ने एक मुकाम हासिल की है. निर्मला पुतुल, ओमप्रकाश वाल्मीकि, तुलसीराम आदि साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से भोगे हुए यथार्थ को अभिव्यक्त किया है. उनकी रचनाओं में उनकी वैचारिकता को रेखांकित किया जा सकता है. ये रचनाएँ अस्तित्व की लड़ाई की रचनाएँ हैं, विद्रोह और संघर्ष की रचनाएँ हैं. इनमें पीड़ा का रस है. घृणा के स्थान पर प्रेम को स्थापित करना की मुहीम है.’