( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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‘जायसी’ कृत ‘पद्‌मावत’ के प्रेम-वर्णन में अतिरंजना

    1 Author(s):  RAKHI VERMA

Vol -  6, Issue- 1 ,         Page(s) : 443 - 457  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मलिक मुहममद जायसी मध्यकालीन निर्गुण भक्तिकाव्यधारा की प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं। जायसी का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ पद्‌मावत हैं जिसका रचना काल सन्‌ 1540 ई० था। उनका अनूठा काव्य पद्‌मावत अनेक दृष्टियों से साहित्य में इसे अमूल्य रत्न, जगमगाता हुआ हीरा आदि कई नामों से नवाज़ा है। पद्‌मावत की मार्मिकता, मौलिक अभिव्यक्ति, सौंदर्य तथा प्रेम-तत्व की मनोहारी उद्‌भावना जायसी की अपनी देन हें यह एक मुसलमान कवि की कृति होने के नाते धर्म और महत्त्व की जिस संकीर्णता से अछूती रहकर मानवता की सृष्टि करती है। उससे कवि की निष्कलुष भावना के प्रति मन श्रद्धा से झुक जाता हैं कवि ने प्रेम को इतना महत्त्व दिया है कि लगता है कि प्रेम ही मानव जीवन का निचोड़ है।

1. जायसी ग्रंथावली, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, वाणी प्रकाशन, दरियागंज, प्रथम सं. 2007। 
2. मध्ययुगीन प्रेमाख्यान, श्याममनोहर पाण्डेय, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, सं. 2007।
3. पद्मावत, वासुदेवशरण अग्रवाल, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, संसकरण 2010।
4. जायसीः  एक नव्यबोध्, अमरबहादुर सिंह ‘अमरेश’, साहित्य वुफटीर लखनउफ, प्रथम सं. 1979। 
5. जायसः व्यक्तित्व और वृफतित्व, डाॅú रामलाल वर्मा, डाॅú रामचन्द्र वर्मा, भारतीय ग्रन्थ निकेतन, दिल्ली-06, प्रथम संस्करण- 1979
6. पद्मावत में चरित्रा परिकल्पना, वशिष्ठ तिवारी, संगम प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम सं. 1991
7. मानक हिन्दी कोश, रामचन्द्र वर्मा, तीसरा खंड, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, 1962
8. पत्रिका- आज के सवाल 18, आज में समय मंे प्रेम, शब्द संधन प्रकाशन, प्रथम सं. 2008

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