( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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श्रीमद्भागवतपुराण में पर्यावरण चेतना

    1 Author(s):  NEHA GOUTAM

Vol -  6, Issue- 2 ,         Page(s) : 147 - 152  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

पुराण भारतीय संस्कृति का वह मेरूदण्ड है- वह आधार पीठ है जिस पर आधुनिक भारतीय समाज अपने नियमन को प्रतिष्ठित करता है। पुराणों से ही भारतीय जीवन का आदर्श, सभ्यता, संस्कृति तथा विद्या-वैभव के उत्कर्ष का वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। पुराण इस अकाट्य प्रमाण के द्योतक हैं कि भारत पर्यावरण का संरक्षक एवं आदि जगद्गुरु था। पुराणों में पद-पद पर पर्यावरण-संरक्षण की चर्चा परिलक्षित है यद्यपि इस काल में पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या नहीं थी परन्तु मानव स्वभाव को जानने वाले ऋषियों ने वैदिक वाङ्मय में जीवन की इस प्रकार व्याख्या की जिससे पर्यावरण की समस्या उत्पन्न ही न हो और कहीं समस्या उत्पन्न हो तो उसके समाधान भी जुटाने का प्रयत्न ऋषियों द्वारा किया गया। मंत्रदृष्टा ऋषियों ने प्रकृति तथा मानव की आवश्यकताओं के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध के महत्त्व को पहचानकर उपभोग के स्थान पर त्याग का जीवन-दर्शन विकसित किया।

1. यजुर्वेद, 40/1
2. श्रीमद्भागवत महापुराण-1/4/14
3. वहीं, 12/23/20
4. वहीं, 12/13/15
5. वहीं, 12/13/16
6. वहीं, 10/25/20
7. वहीं, 10/116/60
8. वहीं, 10/19/11
9. वहीं, 10/19/12

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