( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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टेलीविजन धारावाहिकों का विकास व महत्व: एक अवलोकलन

    1 Author(s):  DR. BED PRAKASH

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 178 - 183  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

वास्तव में देखा जाय तो प्रारम्भ में जिस उद्देष्य को ले कर धारावाहिकों की षुरूआत की गयी थी वह कहीं आज अपने मार्ग से भटक गयी है। इस सूचना क्रान्ति के युग में भले ही टेलीविजन नें पूरी दुनिया को ’’एक विलेज’’ के रूप में बदल दिया है। लेकिन उसका प्रभाव समाज पर सकरात्मक रूप से कम नकारात्कम रूप से ज्यादा पड़ रहा है। सच में देखा जाय तो आज के धारावाहिकों में फूहड़ता, अष्लीलता ज्यादा ही दिखाया जा रहा है। कार्यक्रम निर्माता, निर्देषक मर्यादा की सीमा को तोड़ते नजर आ रहे है। सच्चाई, इमानदारी, न्याय का पाठ पढ़ाने वाले लोग ही ऐसे धारावाहिकों का निर्माण कर रहे है जो लोक लाज की सारी सीमा को तार तार कर रही है। समाज के ऐसे लोग पैसा कमाने के लालच में महिलाओं, बच्चों को अपने धारावाहिक के माध्यम से षिकार बना रहे हैं दर्षकों सामने ऐसे धारावाहिक, कार्यक्रम परोस रहे है जो बिल्कुल फुहड़, अष्लील, गन्दा और घटिया किस्म के होते है।

1.  पचैरी, सुधीष, ’’दूरदर्षन- दषा और दिषा, प्रकाषन विभाग, नई दिल्ली, 1994 पृष्ठ-117
2  सिंह, डाॅ0 देवव्रत, ’’भारतीय इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, प्रभात प्रकाषन, नई दिल्ली, 2007 पृष्ठ-121
  3  पचैरी, सुधीष, ’’दूरदर्षन- दषा और दिषा, प्रकाषन विभाग, नई दिल्ली, 1994 पृष्ठ-117,118
4  सिंह, ए के, ’’टीवी फिल्म स्क्रिप्ट लेखन, युनिवर्सिटी पब्लिकेषन, अंसारी रोड, नई दिल्ली 2009,पृ0-127
5  पचैरी, सुधीष, ’’दूरदर्षन- दषा और दिषा, प्रकाषन विभाग, नई दिल्ली, 1994 पृष्ठ-717,118  
6  सिंह, डाॅ0 देवव्रत, ’’भारतीय इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, प्रभात प्रकाषन, नई दिल्ली, 2007 पृष्ठ 123 
7 कष्यप, डाॅ0 श्याम व कुमार मुकेष-‘’टेलीविजन की कहानी’ राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली 2008, पृष्ठ-143
8  सिंह, डाॅ0 देवव्रत, ’’भारतीय इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, प्रभात प्रकाषन, नई दिल्ली, 2007 पृष्ठ 123
   9 कष्यप, डाॅ0 श्याम व कुमार मुकेष, ‘’टेलीविजन की कहानी’ राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली, 2008, पृष्ठ-143.144

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