( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 1957    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

स्वतंत्रता के बाद महिला लेखन एक दृष्टिकोण

    1 Author(s):  MUKESH KUMAR BADARIA

Vol -  6, Issue- 3 ,         Page(s) : 300 - 305  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

स्वतंत्रता के समय हम राजनीतिक रूप से भले ही आजाद हुए, परन्तु मानसिक रूप से सामाजिक बंधनों, रूढि़यों, परम्पराओं और धर्म के गुलाम बने रहे। इसका परिणाम स्त्रियों और दलितों पर पड़ा। स्त्री चेतना के आंदोलन भी हुए, परन्तु संवैधनिक दर्जा प्राप्त करने के बावजूद स्त्रियाँ सामाजिक शोषण के स्तर से ऊपर उठ नहीं पाई। इसी स्थिति से उबरने के लिए भारतीय महिलाओं ने कलम अपने हाथ में थाम ली। ‘‘स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिस प्रकार देशवासियों में नई आशा, सोच और आकांक्षा जाग्रत हुई, उसी के अन्तर्गत उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, ममता कालिया, चन्द्रकिरण सोनरेक्सा, रजनी परिकर, कंचनलता सब्बरवाल, इन्दु बाली आदि लेखिकाएं कथा साहित्य के क्षेत्र में आगे आई।

1. उर्मिला गुप्त, स्वातंन्न्योत्तर कथा लेखिकाएं, पृ.36
2. व्यथित हृदय, हिन्दी की श्रेष्ठ लेखिकाएं, आवरण पृष्ठ से
3. कमलेश्वर, नई कहानी की भूमिका, पृ.15
4. कृष्णा सोबती, हंस, मई 2001, पृ. 77
5. प्रदीप सी. लाॅड,मन्नू भंडारी की कहानियों के प्रमुख पात्र, पृ.13
6. डाॅ.बंशीधर, मन्नू भंडारी का श्रेष्ठ सर्जनात्मक साहित्य, पृ.101
7. ममता कालिया, थोड़ा सा प्रगतिशील, आवरण पृष्ठ से
8. डा. फौमिदा बिजापुरे, ममता कालियाः व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. 10
9. डाॅ.नगेन्द्र एवं हरदयाल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ. 756
10. वही, पृ. 755-756

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details