( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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दरिद्रता और कुपोषण

    1 Author(s):  DR. NEETU SINGH TOMAR

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 278 - 287  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

एक वर्ग के रूप में सर्वहारा की शिनाख्त भले ही 19-वीं सदी में हुई हो लेकिन इनकी उपस्थिति दास-स्वामी युग से हुई है। इसकी पृष्टिभूमि में जो सबसे जहरीली और खतरनाक बात है वह है दरिद्रता।1 दरिद्रता की परिभाषित करते समय प्रायः 3 बातों-एक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए कितना पैसा चाहिए, समाज में कुछ व्यक्तियों के समूह होने एवं अधिकतर के निर्धन होने की दशाओ की तुलना और निम्नतम जीवन निर्वाह का स्तर क्या है? का ध्यान रखा जाता है।

1. यादव रामजी लाल, समाजशास्त्र, रमेश पब्लिकेशन हाउस, नई दिल्ली-110001, 2011, पृष्ठ 507
2. वही, पृष्ठ 507
3. वही, पृष्ठ 508
4. सिंह विजय पाल एवं रस्तोगी पूजा, भारतीय आर्थिक नीति, विशाल प्रकाशन मन्दिर, विजय नगर, मेरठ, 2005, पृष्ठ 94
5. अद्र दत्त एवं सुन्दरम, भारतीय अर्थ व्यवस्था, एस चन्द एण्ड कम्पनी, दरियागंज, नई दिल्ली, 2013. पृष्ठ 48
6. यू.एन.डी.पी.,मानव रिपोर्ट-2013, दिल्ली-2013, टेबिल-1,पी.पी.,144-7
7. यू.एन.डी.पी.,मानव विकास रिपोर्ट-2013, दिल्ली-2013, टेबिल-1, पी.पी.,144-7
8. वी.के.पुरी एंड एस.एन.मिश्रा, भारतीय अर्थव्यवस्था, हिमालया पब्लिकेशिंग हाउस,मुम्बई-100004, संस्करण-2014
9. एच.आर.डी. 2013, टेबिल 5, पेज-144
10. अग्निहात्री संजय, मानवविकास, जागरण वार्षिकी, जागरण प्रकाशन लि, सर्वोदय नगर,कानपुर, 2011, पृष्ठ 326
11 पुरी वी.के. एंड मिश्रा एस.एन., भारतीय अर्थव्यवस्था, हिमालया पब्लिकेशिंग हाउस,मुम्बई-100004, संस्करण-2014, पेज-29, पैरा-4
12. वही
13. एच.डी.आर.-2011, ओ.पी.,सी.आई.टी., पी.-61ए

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