International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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प्रेमचन्द की कहानियों में दलित मुक्ति व प्रतिरोध के स्वर
1 Author(s): NEELAM
Vol - 6, Issue- 4 , Page(s) : 410 - 417 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में समाज की वास्तविकता को जिस समग्रता के साथ अभिव्यक्त किया है वह भारत के और विशेषकर हिन्दी के रचनाकारों के लिए आदर्श है । प्रेमचन्द ने ऐसे समाज –निर्माण के लिए साहित्य रचना की ,जिसमें सम्मान के साथ जीने का हक हो और ऐसी समाज – व्यवस्था हो ,जिसमें कोई व्यक्ति दूसरे का शोषण न कर सके । प्रेमचन्द के सपनों के समाज का आधार सामाजिक –आर्थिक समानता थी । यह समाज कुछ उसी तरह का समाज था , जिसे महान चिंतक डॉ. भीमराव अम्बेडकर लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करते थे । प्रेमचन्द की कहानियों में दलित जीवन जिस तरह से चित्रित हुआ है, उससे पता चलता है कि दलित जीवन का वर्णन उनके लिए न तो रणनीतिक सवाल था और न ही मात्र सहानूभुति का मसला । वे दलित मुक्ति को मानवता की स्थापना की अनिवार्य शर्त मानते थे ।