( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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ज़मीन पक रही है;, केदारनाथ सिंह के अन्तरमन भावों की

    1 Author(s):  RAJKUMAR KHATIK

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 462 - 471  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

‘‘ज़मीन पक रही है- उसने कहा और उसे लगा यह एक ऐसी ख़बर है जो खरहों की माँद तक पहुँचा देनी चाहिए वह गायब हो गया अब उसे खोजना बेकार था जब बेतार के तार उसे ज़मीन के अन्दर तलाष रहे थे वह बस्ती के सिरे पर एक मटर के दाने के बाहर खड़ा था और उससे सटी हुई मिट्टी अपने नाखूनों से खुरच रहा था’’

  1. मारोती विठोबा सींगले’, (केदारनाथ सिंह के काव्य की गवेषणा’, पृ.सं.:78, समता प्रकाषन, कानपुर, सं.: 2010
  2. ‘विष्णु खरे, ‘जमीन पक रही है’, ‘‘आलोचना’’, फलेप से 
  3. शेरपाल सिंह, ‘केदारनाथ सिंह का काल्यालोक’, पृ.सं.: 8117, विध्या प्रकाषन, कानपुर, प्र.सं.: 2005
  4. शेरपाल सिंह, ‘केदारनाथ सिंह का काल्यालोक’, पृ.सं.: 118 विध्या प्रकाषन, कानपुर, प्र.सं.: 2005
  5. नन्दकिषोर नवल, ‘समकालीन काव्य-यात्रा’, पृ.सं. 137, राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली: 2004 
  6. गोविन्द प्रकाष, ‘केदारनाथ सिंह की कविता: बिम्ब से आख्यान तक’’, पृ.सं.: 9, स्वराज प्रकाषन, नई दिल्ली, प्र.संस्क.: 2013
  7. मारोती विठोबा सींगले’, (केदारनाथ सिंह के काव्य की गवेषणा’, पृ.सं. 80-81, समता प्रकाषन, कानपुर, सं.: 2010 
  8. रवि श्रीवास्तव, ‘कवि केदारनाथ सिंहरू गोली दंगे न हाथापाई, अपनी है ये अजब लड़ाई’, आलोचना’, अंक: 50, जु.सि.: 2013 
  9. नन्दकिषोर नवल, ‘पृ.सं. 140 
  10. बच्चन सिंह, ‘हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास’, पृ.सं.: 445, राधाकृष्ण प्रकाषन, नई दिल्ली, तीसरी आवृत्ति: 2009

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