( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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समकालीन कविता में आदिवासी वेदना व विद्रोह के स्वर

    1 Author(s):  MAMTA SONI

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 484 - 487  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

इक्कीसवीं सदी के दौर में विश्व साहित्य में कथ्य एवं शिल्पगत धरातल पर आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। दलित विमर्श एवं स्त्री विमर्श के पश्चात् अब साहित्य में आदिवासी विमर्श का नया दौर चल रहा है। साहित्य के दोनों पक्ष गद्य एवं पद्य में ऐसी रचनाओं का उल्लेख हो रहा है। जिसमें आदिवासियों के विमर्श को प्रचुर मात्रा में वाणी प्रदान की गई है।

1. आदिवासी स्वर और शताब्दी-रमणिका गुप्ता पृष्ठ 101
2. शोभाकांत (सम्पादित)ः नागार्जुन रचनावली भाग-2, पृष्ठ 45 
3. आदिवासी स्वर और शताब्दी-रमणिका गुप्ता - पृष्ठ 24
4. वहीं - पृष्ठ 49
5. वहीं - पृष्ठ 33
6. वहीं - पृष्ठ 49
7. डाॅ. रणजीत -हिन्दी के प्रगतिशील और समकालीन कवि पृष्ठ 306

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