International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मत्स्येन्द्र शुक्ल की कविता में सामाजिक चिन्तन
1 Author(s): SRISHTI KHUSHWAHA
Vol - 6, Issue- 5 , Page(s) : 271 - 278 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व और पश्चात् के साहित्य पर यदि नज़र डाली जाए, तो स्पष्ट होता है कि जिस तरह से जुझारु विचारों का प्रभाव तेजी से बढ़ा है उसी तरह से, और उसी तीव्रता के साथ प्रतिरोधी वादों के स्वरों की अभिव्यक्ति भी साहित्यिक धरातल पर दिखायी देती है। कलात्मकता एवं शैली तथा शिल्प के स्तर पर निश्चय ही साठ के दशक की कविता अपनी परख, सूझ-बूझ और विश्लेषण क्षमता का अद्भुत, असाधारण परिचय देती है। कवि, पाठक को अपनी लेखनी की सम्मोहन शक्ति से वहां तक ले जाने में पूरी तरह से सफल हुआ है जहां उम्मीद की कोई किरण फूटती नहीं दिखाई देती है।