( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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संस्कृत क्यों देव भाषा

    1 Author(s):  DR. SHIXA

Vol -  6, Issue- 7 ,         Page(s) : 154 - 156  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

संस्कृत शब्द का अर्थ "तत्पर”, “शुद्ध”, “सभ्य” या “संपूर्ण” होता है। संस्कृत ऐसे ही नहीं"देववाणी"(देवताओं की भाषा)कही जाती थी। हमारी संस्कृति में इसका अनुपम स्थान रहा है और पूरे विश्व में इसकी पहचान एक दुर्लभ उत्तम भाषा की रही है। संस्कृत हमारे दार्शनिकों, हमारे वैज्ञानिकों, हमारे गणितज्ञों, हमारे कवियों, हमारे नाटककारों, हमारे व्याकरणाचार्यों, हमारे विधिवेत्ताओं की भाषा रही है। व्याकरण में पाणिनी और पतंजलि (अष्टाध्यायी और महाभाष्य के लेखकों) की पूरे विश्व में कोई बराबरी नहीं है। खगोलशास्त्र और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, बराहमिहिर और भास्कराचार्य ने मानवता के लिए ज्ञान के नए क्षेत्र खोले। ऐसा ही कार्य चिकित्सा के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत ने किया। दर्शन में गौतम(न्याय विधि के संस्थापक), अश्वघोष(बुद्धचरित के लेखक), कपिल(सांख्य विधि के संस्थापक), शंकराचार्य और वृहस्पति ने दुनिया को सबसे विस्तृत दर्शन तंत्र प्रस्तुत किया, इससे पहले कोई और ऐसा नहीं कर सका।

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