( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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दरिद्रता कुचक्र और अर्थव्यवस्था

    1 Author(s):  DR. NEETU SINGH TOMAR

Vol -  6, Issue- 8 ,         Page(s) : 138 - 141  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

दरिद्रता से आशय उस सामाजिक क्रिया से होता है, जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में समाज का भाग न्यूनतम जीवन स्तर से वंचित रह जाता है तथा केवल निर्वाह स्तर पर ही गुजारा करता है तो यह कहा जाता है कि समाज में व्यापक दरिद्रता मौजूद है। अनेक विद्वान यह मानते हैं कि वह व्यक्ति दरिद्र है जो दरिद्रता रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहा है। दरिद्रता रेखा की संकल्पना सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के प्रथम निदेशक लाॅर्ड बाॅयड ओर ने सन् 1945 में की थी। उन्होंने बताय,ा यह रेखा बताती है कि जिन व्यक्तियों को 2300 कैलोरी का भोजन नहीं मिल पाता है उनको दरिद्रता की रेखा के नीचे माना जाना चाहिए।

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