( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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कबीर का सामाजिक दर्शन

    1 Author(s):  PRATIMA JYOTI

Vol -  6, Issue- 11 ,         Page(s) : 26 - 29  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मध्यकालीन कवियों में समाज को सबसे ज्यादा वैचारिक रूप से उद्वेलित, आन्दोलित और प्रभावित करने में कवि सम्राट कबीरदास जी का योगदान निःसन्देह रूप से अविस्मरणीय है। उन्होनें अपने वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत विचारों से न केवल भारतीय जनमानस को प्रभावित किया बल्कि मन की गहराइयों में जाकर उनके विचारों को परिवर्तित करने में एक अभिनवमनोमूलक दृष्टि भी प्रदान की है। कबीर का प्रादुर्भाव ऐसे समय में हुआ जब समाज अनेक कुरीतियों, कुप्रथाओं एवं विषमताओं से ग्रस्त था। जातिवाद, छुआछूत, अन्धविश्वास, रूढि़वादिता, मिथ्याचार व पाखण्डवाद का बोल बाला था और हिन्दु व मुसलमान धार्मिक विद्वेष के कारण आपस में झगड़ते रहते थे। दोनों धर्मो के ठेकेदार स्वार्थ की रोटिया धार्मिक उन्माद के चूल्हे पर सेक रहे थे। धार्मिक कट्टरता एवं संकीर्णता के कारण समाज का सन्तुलन बिगड़ रहा था। ऐसे समय में किसी ऐसे समाज सुधारक की आवश्यकता थी, जो समाज में व्याप्त इन बुराइयों पर निर्भीकता से प्रहार कर सके और दोनों धर्मों के अनुयायिओं को बिना किसी भेदभाव के सदाचरण का उपदेश देकर सामाजिक समरसता की स्थापना करे। कबीर इसी आवश्यकता की प्रतिपूर्ति करते हुए दिखायी पड़ते है।

1- काशी का इतिहास, डाँ. मोती चन्द, द्वितीय संस्करण 1985.
2- हिन्दी कविता में दलित चेतनाः एक अनुशीलन, डाॅ. जयन्ती माकडिया, आकाश पब्लिशर्स        एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स , गाजियाबाद।
3- कबीर ग्रन्थावली, सं0 श्यामसुन्दरदास, 19 वां संस्करण।
4- बीजक सं0 गंगाशरण शास्त्री।
5- मेरा दलित चिन्तन, डाॅ. एन सिंह, कंचन प्रकाशन, नई दिल्ली ।
6- कृष्ण चन्द्र श्रीवास्तव, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, यूनाइटेड बुकडिपो  इलाहाबाद।

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