( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा ‘गुडि़या भीतर गुडि़या में स्त्री विमर्श’

    1 Author(s):  LAXMI BANSAL

Vol -  6, Issue- 12 ,         Page(s) : 227 - 230  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

जब से महिला सशक्तिकरण वर्ष मनाया गया है तभी से नारी , महिला व स्त्री शब्द विषय के केन्द्र में आने लगा है । आज हर तरफ स्त्री चेतना , स्त्री अस्मिता , स्त्री विमर्श आदि की बुहार लगी है । स्त्री अपनी स्थिति को कायम करने के लिए सदियों से संघर्षरत रही है । आज उसके अधिकारों की मांग में भी परिवर्तन आया है , जहाँ पहले वह लोकतांत्रिक अधिकार जैसे - शिक्षा , रोजगार , संपत्ति , संसद में प्रवेश पाना आदि तक ही सीमित थी , वहीं आज इन अधिकारों की मांग में स्त्रीं पर पुरूष का दवाब और अधिकार के विरूद्ध संघर्ष , कार्यस्थान में उनकी गिरी हुई स्थिति , समाज , संस्कृति और धर्म के द्वारा दिए गए नीचे दर्जे के विरूद्ध संघर्ष तथा बच्चे पैदा करने और पालने जैसे दोहरे बोझ से मुक्ति आदि भी शमिल हो गए हैं । आज की स्त्री अपने विषयों , मुद्दों , अवस्थाओं , समस्याओं के बारे में सोचने लगी हैं ।

  1. नारीवादी विमर्श , पृ॰ 11
  2. शब्द शिखर , पृ॰ 87
  3. गुड़िया भीतर गुड़िया , पृ॰ 29
  4. गुड़िया भीतर गुड़िया , पृ॰ 14
  5. गुड़िया भीतर गुड़िया , पृ॰ 66
  6. गुड़िया भीतर गुड़िया , पृ॰ 341
  7. जनसत्ता - 6/3/2008

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