( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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प्रेमचन्द का गोदान एवं आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी

    1 Author(s):  DR. SHRIKANT RINGE

Vol -  7, Issue- 5 ,         Page(s) : 169 - 170  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्रेमचन्द भारतीय हिन्दी साहित्य के अप्रतिम कथा-चितेरे हैं। अनेक आरोप-प्रत्यारोपों के बाद भी उनका साहित्य अटल खड़ा है। काव्य क्षेत्र में जैसे कबीर, सूर, तुलसी जन-जन में प्रतिष्ठित हैं वैसे ही प्रेमचन्द के होरी-धनिया, गोबर, दातादीन, अलगू चैधरी, बुधिया, घीसू माधव, होरी-मोती ................ जुबां पर राज करते हैं। ”गोदान“ उपन्यास हिन्दी साहित्य मंे युग-प्रवर्तक का कार्य कर गया है। इस उपन्यास मंे प्रेमचन्द का कृतित्व कई बातों में अति महत्वपूर्ण हो उठा है। लोक-परम्परा, उसकी संस्कृति को जीने वाले भारतीय किसान के संघर्ष की कहानी है ”गोदान“। अपने पूर्व के उपन्यासों का विकास गोदान है ही, साथ ही उसमंे विस्तार भी है। एक साथ देहाती संस्कृति तथा शहरी संस्कृति का समावेश और दोनों को समान रूप से साथ ले चलने की कला प्रेमचन्द में अद्भुत है। जिस तरह आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने निराला जी के काव्य को ”पुरुष काव्य“ कहा है उसी तरह प्रेमचन्द जी की कला में भी उन्होंने ”पौरुष“ की प्रमुखता पाई है। उन्होंने लिखा है -

1. आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी - ”आधुनिक साहित्य“ (भूमिका), पृष्ठ - 15
2. आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी - ”आधुनिक साहित्य“, पृष्ठ - 198
3. श्याम सुन्दर घोष - ”उपन्यासकार पे्रमचन्द“ - पृष्ठ - 107
4. प्रेमचन्द - ”गोदान“ - पृष्ठ - 7
5. डाॅ.रामविलास शर्मा - “प्रेमचन्द“ - पृष्ठ - 47
6. डाॅ. राममूर्ति त्रिपाठी - “प्रेमचन्द का चिन्तन: अपनी जमीन“ - पृष्ठ - 49

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