( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 501    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

वैदिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य मेंवर्तमानहिन्दी कविता में मानवाधिकार

    1 Author(s):  DR. KANCHANMALA PANDIT

Vol -  2, Issue- 3 ,         Page(s) : 10 - 17  (2011 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्रधानाचार्या-महंथ केशव संस्कृत महाविद्यालय फतुहा, पटना। (अंगीभूत इकाई:कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय,दरभंगा, बिहार) वर्तमान समय में मानवाधिकार विश्व चिन्तन का प्रमुख विषय है। जिनका केन्द्र बिन्दु मानव-मूल्य है, जो दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। ऐसी चिन्ताजनक विषम परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिए हमें मानवता के संरक्षक वैदिक संस्कृति को पुनः अपनाना होगा। वैदिक मूल्य न केवल भारतीय साहित्य की उच्चता का बोध कराता है बल्कि भारतीय समाज की अक्षुण्ण सांस्कृतिक परम्परा का वाहक भी है। स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी में मानवाधिकार की अभिव्यक्ति कितनी सपफलता से हो पायी ळें प्रस्तुत शोध आलेख इसी चिंतन का प्रतिफलन है ।

1 मानवाधिकार, जय जय राम उपाध्याय, पृ0 16
2 यजुर्वेद, 23-52
3 ऋग्वेद, 4-35-8 शेष पृष्ठ 60 पर
4 वर्तमान, अनूप- 560
5 साठोत्तरी हिन्दी कविता में जनवादी चेतना, नरेन्द्र सिंह, पृ0 150
6 गुरू कुल शोध भारती, अक्टूबर 2010, अंक- 14 पृ0- 11
7 ऋग्वेद, 10-191-2
8 वही,ं, 10-191-4
9 वही,ं, 5-60-5
10 गुरूकुल, शोध भारती, अक्टूबर 2010, अंक- 14, पृ0- 10
11 उत्पीड़न की यात्रा, लक्ष्मीनारायण सुधकर, पृ0 61
12 अथर्ववेद, 12-1-14
13 ऋग्वेद, 5-66-6
14 वही,ं, 5-82-2
15 माधवी, भूपेन्द्र शुक्ल, पृ0 119
16 मुक्तिबोध रचनावली प्रथम भाग, नेमिचन्द्र जैन, पृ0- 211
17 पुरानी जुतियों का कोरस, नागार्जुन, पृ0 30
18 ऋग्वेद, 1-89-8
19 वही,ं, 10-124-5
20 मुक्तिबोध रचनावली, खण्ड- 5, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्रा, सं0 नेमिचन्द्र, पृ0- 76
21 सहृदय, जनवरी-मार्च, 2011, अंक- 7, पृ0- 23

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details