भारत में नगर निगम की सरंचना-जयपुर नगर निगम के विषेष सन्र्दभ में
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Author(s):
NEHA SHARMA . DR. RAVINDER SHARMA
Vol - 7, Issue- 12 ,
Page(s) : 37 - 54
(2016 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
नगर निगम नगरीय स्थानीय शासन का शीर्षस्थ होने का अर्थ यह है कि वह अन्य प्रकार के नगर-षासनों पर सत्ता का प्रयोग करता है। भारत में नगरीय स्थानीय शासन का संगठन गा्रमीण स्थानीय शासन की भाँति सोपानात्मक नहीं है। नगर निगम संस्था के रुप में अधिक सम्माननीय है और अन्य नगर निकायों की तुलना में अधिक स्वायत्तता का उपभोग करता है। नगर निगम की स्थापना राज्य के विधानांग1 द्वारा पारित विषेष संविधि के अन्तर्गत की जाती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर निरन्तर प्रगति की और अग्रसर हो रहा है। ऐसे में शहर को स्वच्छ व व्यवस्थित रुप से रखने की जिम्मेदारी नगर निगम की होती है। इस लेख में भारत व जयपुर नगर निगम की संरचना का अध्ययन किया गया है।
नगर निगम का अर्थ- नगरीय स्वायत्त शासन संस्थाओं के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं शीर्षस्थ संस्था ही नगर निगम कहलाती है। हमारे देष में प्रायः बड़े शहरों या महानगरों में ही नगर निगम की स्थापना की जाती है। नगर निगमों को परिषद या नगर पालिकाओं की तुलना में अधिक प्रषासकीय शक्तियाँ, करारोपण शक्तियाँ तथा प्रषासकीय स्वायत्तता प्राप्त होती है।2 नगर निगमों की स्थापना राज्य विधान मण्डलों द्वारा बनाये गये कानूनों के अन्तर्गत होती है।3 यदि नगर निगम केन्दª शासित प्रदेष में स्थित है तो संसद इसके लिये कानून बनाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नगर निगमों की स्थापना प्रायः राज्य द्वारा पारित किये गये अधिनियम के अधीन होती है। वस्तुतः यह एक ’निगम निकाय’ होती है, इसकी अपनी एक सार्व मुदªा होती है तथा अविच्छिन्न या शाष्वत उत्तराधिकार होता है। कानून की दृष्टि से नगर निगम एक वैध व्यक्ति है। यह सम्पत्ति आदि का क्रय-विक्रय कर सकता है तथा इस पर व इसके द्वारा दूसरों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- यदि केन्दªषासित अंचल में नगर निगम की स्थापना करनी हो, तो संसद द्वारा-यथा, दिल्ली नगर निगम(Delhi Municipal Corporation)
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- उपरोक्त, अनुच्छेद 243 द (2)
- उपरोक्त, अनुच्छेद 243 न (1)
- उपरोक्त, अनुच्छेद 243 न (2)
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