( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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धारणाएंः महावस्तु अवदान और मिलिंदपञ्हो के आलोक में

    1 Author(s):  YOGYATA RANI

Vol -  8, Issue- 3 ,         Page(s) : 26 - 31  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

संस्कृत भाषा सदैवमनीषियों की भाषा मानी गई है। संभवतः इसी कारण बौद्ध और जैनों ने भी इस भाषा में अपने अपने ग्रंथों का प्रणयन किया। बौद्ध संस्कृत वाङ्मय अति विशाल है। उसके एक महत्वपूर्ण अंश का प्रथम शताब्दी से दशम शताब्दी में अनुवाद हुआ था एवं भोट भाषा में सातवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच अति विश्वसनीय भाषांतर किया गया था। दसवीं शताब्दी के पश्चात् यह वाङ्मय कोरिया तथा जापान में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के साथ पहुँचा। मध्य एशिया में इस वाङ्मय का प्रथम शताब्दी से पूर्व ही प्रवेश हो चुका था और फिर उसमें शनैः शनैः वृद्धि होती गयी।मंगोलिया में यह वाङ्मय भोट देश से गयाए तथा भोट त्रिपिटकके समान उसका भी त्रिपिटक है। मूल संस्कृत में इस वाङ्मय का एक अंश नेपाल से प्राप्त हो चुका है। यूरोपीय विद्वानों ने पूर्वी तुर्किस्तान से अनेक खंडित कृतियों का उद्धार किया है। बहुसंख्य ग्रन्थ गिलगिट से भी प्राप्त हुए हैं तथा अनेक ग्रंथों का भोट एवं चीनी भाषाओँ में पुनरुद्धार किया गया है।

  1. 1. सद्धर्मपुण्डरीक, 21/54-55 पृ 62 सम्पादकए पी० एल० वैदयए मिथिला विद्यापीठ दरभंगा 1960 
  2. 2. बोधिचर्यावतार पंजिकाए लुइस दे ल वाले पुसिन् का संस्करण पृ 432ए बिब्लोथिका इण्डिका एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ कलकत्ताए बंगाल 1903 
  3. 3. महावस्तु अवदान वाल्यूम 1पृ 201 सम्पादक शीतांशु शेखर बागचि मिथिला विद्यापीठ दरभंगा 1970 
  4. 4. वही 1 पृ 202 
  5. 5. वही 1 पृ 202
  6. 6. वही 1 पृ 202 गाथा सं 2.3
  7. 7. दीघनिकाय भाग 1 पृ 46 सम्पादक भिक्षु जगदीश काश्यप नालंदा संस्करण 1958
  8. 8. वही भाग 1 पृ 46.47
  9. 9. वही भाग 1 पृ 48 
  10. 10. वही भाग 1 पृ 49  
  11. 11. वही भाग 1 पृ 51  
  12. 12. वही भाग 1 पृ 50
  13. 13. मज्झिमनिकाय भाग 1 पृ 128  सम्पादक भिक्षु जगदीश काश्यप नालंदा संस्करण 1958 
  14. 14. मिलिंदपञ्हो पृ 5ए सम्पादक आर0 डी0 वाडेकर बम्बई विवि संस्करण 1940  
  15. 15. वही पृ 5.6 
  16. 16. मिलिंदप्रश्न ;हिंदी अनुवाद बोधिनी पृ 8 

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