( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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प्रगतिशील आन्दोलन और राजनीतिक चेतना

    1 Author(s):  DR. RANJANA SINGH

Vol -  7, Issue- 10 ,         Page(s) : 154 - 163  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

इतिहास की भौतिकवादी अवधारणा इस तथ्य पर बल देती है कि समाज गतिशील है और इसकी दिशा उत्थानशील और विकासमान है। यह अवधारणा समाज में व्याप्त अन्तर्विरोधों की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए इस निष्कर्ष पर पहॅुचती है कि हमेशा दो प्रकार की प्रवृत्तियंाॅ सामाजिक यथार्थ को अपने-अपने ढंग से प्रभावित, संचालित और नियन्त्रित करती रही हैं। प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियाॅं जड्ता, ठहराव, गतिहीनता और यथास्थितिवाद का पोषण करती हैं। इसके विपरीत प्रगतिशील प्रवृत्तियाॅ समाज की अग्रगति और विकास में सहायक शक्तियों के साथ खड़ी होती हंै। ज्ञात इतिहास, वर्ग संघर्षों का इतिहास है। माकर््स के चिंतन पर आधारित इस धारणा के परिप्रेक्ष्य में प्रगतिशील चिंतन, विचारधारा और उसके निष्पत्तियों का विवेचन करते हुए यह स्पष्ट होता है कि समाज सदैव अग्रगामी प्रवृत्तियों की वाहक रचनाशीलता को आधार बनाकर अपना विकास करता है। साहित्य के क्षेत्र में प्रगतिशील चिंतन ’प्रगतिवाद’ के अवधारणात्मक रूप में विकसित होने के पहले से ही विद्यमान रहा है। डाॅ. भरत सिंह ने लिखा है

1. डाॅ. भरत सिंह: प्रतिश्रुति और परिवर्तन: पृष्ठ 162
2. डाॅ. विजय शंकर मल्ल: हिन्दी काव्य में प्रगतिवाद: पृष्ठ 87
3. डाॅ. विजय शंकर मल्ल: हिन्दी काव्य में प्रगतिवाद: पृष्ठ 87,88
4. जनवादी साहित्य विशेषांक उत्तरार्ध अंक 20, पृष्ठ 68
5. डाॅ. भरत सिंह: प्रतिश्रुति और परिवर्तन: पृष्ठ 163
6. डाॅ. हरिशंकर परिसाई: अध्यक्षीय भाषण: राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक महासंघ, द्वितीय सम्मेलन।
7. पन्त: आाधुनिक कवि, भाग-2, भूमिका पृष्ठ 11
8. डाॅ. लल्लन राय: हिन्दी की प्रगतिशील कविता, पृष्ठ 3
9. डाॅ. नामवर सिंह: आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां, पृ0 57
10. डाॅ. शिवदान सिंह चैहान: साहित्य की समस्याएं, पृ0 54
11. निराला रचनावली पृ0 374
12. डाॅ. रामविलास शर्मा: श्रम का सूरजः पृ0 11 
13. जनवादी साहित्य विशेषांक, उत्तरार्ध 20, परिशिष्ट, पृ0 68

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