आधुनिक संदर्भ में श्री अरविंद का श्रीमद्भगवद्गीता और योगसाधनात्मक जीवन पद्धति का विवेचनात्मक अध्ययन
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Author(s):
DILEEP TIWARI, SUNIL KUMAR SRIWAS, MAYANK YADAV
Vol - 8, Issue- 5 ,
Page(s) : 191 - 196
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
विश्व वसुधा को सदैव अध्यात्म के अपूर्व प्रकाश से आलोकित करता रहा है, भारत। परमात्मा के भिन्न अवतारों, तथा सिद्वों, साधु, सन्तों के द्वारा सदैव दिव्य प्रकाश साधारण जनमानस में उतरता रहा हैं। श्री अरविंद का पृथ्वी पर आना अनेक समस्याओं का समाधान सिद्ध हुआ तथा पृथ्वी की मूल जड़ता को उन्होंने ऊॅचा से ऊचा उठाकर मानव में तथा जड़तत्व में परम आत्मन को पुनर्संगठन किया ताकि पृथ्वी दिव्य जीवन की सृश्टि हो।’’
- स्वामी कृश्णानंद, भगवद्गीता दर्षन, पृ.-11
- स्वामी कृश्णानंद, भगवद्गीता दर्षन, पृ.-12
- जयदयाल गोयन्दका, श्रीमद्भगवद्गीता तत्व-विवेचनी हिन्दी टीका, पृ ़-10
- जयदयाल गोयन्दका, श्रीमद्भगवद्गीता तत्व विवेचनी हिन्दी टीका, पृ ़-9
- रवीन्द्र, लाल कमल, पृ.-210
- श्रीमद्भगवद्गीता-2/53
- श्रीमद्भगवद्गीता-2/50
- पातंजल-योग सूत्र-1/20
- आचार्य बिनोवा, स्थित प्रज्ञ दर्षन पृ ़-8
- स्वामी आत्मानंद, गीतातत्व-चिंतन, भाग-1 पृ ़-457
- ैीतप ।नतवइपदकवए ज्ीवनहीजे ंदक हसपउचेमेए 16ध्378
- पातंजल-योग सूत्र-1/54.55
- आचार्य रजनीष, महावीरवाणी-2, पृ ़-358
- ज्योति थानकी, महायोगी श्री अरविंद पृ ़-99
- श्री अरविन्द-गीता प्रबन्ध, पृ ़- 31
- श्रीमद्भगवद्गीता-4/7
- श्री अरविन्द-गीता प्रबन्ध, पृ ़- 33
- श्री अरविन्द-गीता प्रबन्ध, पृ ़- 34
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