( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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संसार का बन्धन व संसार से मुक्ति

    1 Author(s):  POONAM DEVI

Vol -  8, Issue- 10 ,         Page(s) : 35 - 39  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

संसार का हर एक व्यक्ति (प्राणी)अनादिकाल से भ्रमण करता रहा है और वह अध्यात्मिक आदिभंतिक व आदिदैविक इन तीन दुखों को झेलता आ रहा है। वो इन तीन दुखों से पूर्ण रूप से छुटकारा पाना चाहता है। परन्तु जितना वह संसार कि मोह माया में डूबता जाता हैए उतना ही उसमे फसता चला जाता है। क्योंकि वो जैसे जैसे कर्म करता हैए वैसे.वैसे उसे अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है। कर्म अच्छे हो तो फल अच्छा होगा और कर्म बुरे हो तो फल भी बुरे ही मिलेंगे। यही जीवन का बन्धन है तथा दुखों व कर्मों से अनिवार्य रूप से छुटकारा ही मुक्ति है।

  1. संख्य्तात्व्कौमुदी  ईश्वरकृष्ण,  पृ. २
  2. न्यायदर्शन,  ऋषि अक्षपाद गौतम
  3. वैयशेषिक दर्शन, ऋषि कणाद
  4. महाभारत (१२/ ३१/ ९)
  5. गीता (१२/ ५)
  6. साधन.सुधा.सिन्धु स्वामी रामसुखदास अ. १ पृ. ६७
  7. साधन.सुधा.सिन्धु  स्वामी रामसुखदास अ. १ पृ. ८५१
  8. मनुस्मृति
  9. ऋग्वेदभाष्य उपोद्घात
  10. संस्कृत.हिंदी.शब्कोष 

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