International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
संसार का बन्धन व संसार से मुक्ति
1 Author(s): POONAM DEVI
Vol - 8, Issue- 10 , Page(s) : 35 - 39 (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
संसार का हर एक व्यक्ति (प्राणी)अनादिकाल से भ्रमण करता रहा है और वह अध्यात्मिक आदिभंतिक व आदिदैविक इन तीन दुखों को झेलता आ रहा है। वो इन तीन दुखों से पूर्ण रूप से छुटकारा पाना चाहता है। परन्तु जितना वह संसार कि मोह माया में डूबता जाता हैए उतना ही उसमे फसता चला जाता है। क्योंकि वो जैसे जैसे कर्म करता हैए वैसे.वैसे उसे अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है। कर्म अच्छे हो तो फल अच्छा होगा और कर्म बुरे हो तो फल भी बुरे ही मिलेंगे। यही जीवन का बन्धन है तथा दुखों व कर्मों से अनिवार्य रूप से छुटकारा ही मुक्ति है।