( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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संस्कृतसाहित्ये यथार्थस्यानुसन्धानोपयोगिता

    1 Author(s):  DR. KAMLESH KUMAR

Vol -  8, Issue- 7 ,         Page(s) : 139 - 142  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

साहित्ये यथार्थमित्येकावधारणा। एतस्या एवाधुनिकं स्वरूपं ‘यथार्थवादः’। यथार्थस्यो˜वो विकासश्च प्रथमं फ्रांसदेशे चित्रादिकलाक्षेत्रेषु जातः, अनन्तरं साहित्येऽपि। फ्रांसदेशादेवास्य सम्पूर्ण जगति प्रसारः जातः। एतस्य मूलं पाश्चात्त्यविपश्चि˜िः भूतवादे दृश्यते। यथार्थवादस्य सर्वमान्यं स्वरूपनिर्धारणमतिदुष्करम्।

1. यजुर्वेदः, 40/8
2. आचार्यबलदेवोपाध्यायः, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ0 32
3. आचार्यो भरतः, नाट्यशास्त्रम्, 1/12
4. आचार्यो मम्मटः, काव्यप्रकाशः, 1/2
5. आचार्यो मम्मटः, काव्यप्रकाशः, 1/3
6. आचार्यविश्वनाथः, साहित्यदर्पणः, 6/8
7. डाॅ0 नगेन्द्रः, रससिद्धान्त, पृ0 335
8. डाॅ0 कपिलदेवद्विवेदी, संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास, पृ0 109
9. कालिदासः, मालविकाग्निमित्रम्, 1/2
10. ध्वन्यालोकः, का0 3/14 वृत्तिगतः श्लोकः
11. रवीन्द्रनाथठाकुरः, प्राचीन साहित्य, पृ0 1
12. महाभारतम्, आदिपर्व 62/53
13. महाभारतम्, आदिपर्व 2/386
14. आचार्यबलदेवोपाध्यायः, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ057
15. आचार्यबलदेवोपाध्यायः, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ070
16. रामचरितोपाध्यायः, संस्कृत के महाकवि और काव्य, पृ0 171-172
17. आचार्यबलदेवोपाध्यायः, संस्कृतसुकविसमीक्षा, पृ0 569 तमे पृष्ठे उद्धृतम्
18. तर्कभाषा, पृ0 18

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