( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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कानून और स्त्री

    1 Author(s):  DR. RICHA PRASAD

Vol -  8, Issue- 9 ,         Page(s) : 67 - 71  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारतीय सामज मंे नारी की स्थिति में जितना आरोह और अवरोह होता रहा है सम्भवतः विश्व के इतिहास में किसी दूसरे समाज मे यह स्थिति देखने को नहीं मिलेगी। हिन्दू धर्म में नारी का स्थान हमेशा उच्च और प्रतिष्ठीत रहा है। नारी को सभ्यता का स्त्रोत, संस्कृती का निर्माता और सामाजिक जीवन का आधार माना गया है। हमारी सभ्यता में स्त्रियों को शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना गया है, जिसकी अभिव्यक्ति के रूप में लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा की जाती है। पर समय के साथ-साथ स्त्रियों की ऐसी स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हो गया परिणामस्वरूप समाज में स्त्री की लज्जा, ममता और स्नेह को उसकी दुर्बलता समझ कर पुरूष ने उसपर एकाधिकार करना शुरू कर दिया। इसी वजह से स्त्री की स्थिति समाज मे निम्न होती गई। परन्तु कुछ समाजसुधारकों के प्रयास के कारण नारी संबंधी रूढ़िवादी धारणाओ को बदलने की कोशिश की गई। उदाहरणस्वरूप राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, गोविन्द रानाडे, दयानन्द सरस्वती आदि के प्रगतिशील विचारो एवं समाजसुधार के प्रयासो के कारण स्वतंत्र भारत के संविधान मे स्वतंत्रता, समानता एवं धर्मनिरपेक्षता के महान आदर्शो के अनुकूल नारी जीवन को गुलामी की जंजीर से मुक्त करने का प्रयास किया गया और यह प्रयास आज भी निंरतर जारी है।

1. अरविंद जैन, ‘‘उत्तराधिकार या पुत्राअधिकार‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं 260-261
2. रेनू त्रिपाठी एवं अर्पणा त्रिपाठी, ‘‘कार्यालय में महिलाएं‘‘, कामकाजी महिलाए, खुशी पब्लिकेशन, नई दिल्ली प्रथम संस्करण, 2011 पृष्ट सं 61-64
3. अरविंद जैन, ‘‘कोख, कानून और कूररता‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं-69
4. अरविंद जैन, ‘‘बहन के नाम पाती‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 प्रष्ट सं-152
5. अरविंद जैन, ‘‘पितृत्व परिक्षण-न्यायपलिका धर्म संकट में‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं-106
6. अरविंद जैन, ‘‘बहन के नाम पाती‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं 149-150
7. अरविंद जैन, ‘‘शोषण से दबी स्त्री देह‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं 156-157
8. अरविंद जैन, ‘‘योन हिंसा और न्याय की भाषा‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं-208
9. अरविंद जैन, ‘‘योन हिंसा और न्याय की भाषा‘‘, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली परिवधिति, 2006 पृष्ट सं-207.

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